Thursday, August 13, 2009

नत कर दो मस्तक मेरा..................

नत करदो मस्तक मेरा अपनी चरण-धूल में,

अंहकार डूबा दो मेरा सारा अश्रूजल में।

करने स्वयं को गौरव-दान करता केवल निज अपमान,

बार बार चक्कर खा-खाकर मरता हूँ पल-पल में।

अंहकार डूबा दो मेरा सारा अश्रूजल में।

Wednesday, August 12, 2009

कुछ नज्में.............


नींद इस सोच से टूटी अक्सर

किस तरह कटती हैं रातें उसकी - परवीन शाकिर
ऐसे मौसम भी गुजारे हमने

सुबहें जब अपनी थीं शामें उसकी - परवीन शाकिर
आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते

अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते - अकबर इलाहाबादी
अब ये होगा शायद अपनी आग में खुद जल जायेंगे

तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पायेंगे - अहमद हमदानी


ये खुले खुले से गेसू, इन्हें लाख तू सँवारे

मेरे हाथ से संवरते, तो कुछ और बात होती- आगा हश्र
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी

कुछ मुझे भी खराब होना था - मजाज लखनवी
न जाने क्या है उस की बेबाक आंखों में

वो मुंह छुपा के जाये भी तो बेवफा लगे- कैसर उल जाफरी
किसी बेवफा की खातिर ये जुनूं फराज कब तलक

जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ- अहमद फ़राज


काम आ सकीं न अपनी वफायें तो क्या करें

इक बेवफा को भूल न जायें तो क्या करें- अख्तर शीरानी
इस से पहले कि बेवफा हो जायें

क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें- अहमद फराज
इस पुरानी बेवफा दुनिया का रोना कब तलक

आइए मिलजुल के इक दुनिया नई पैदा करें- नजीर बनारसी
हम अक्सर दोस्तों की बेवफाई सह तो लेते हैं

मगर हम जानते हैं दिल हमारे टूट जाते हैं- रोशन नंदा

अर्ज है................

ये शबे फिराक ये बेबसी, हैं कदम-कदम पे उदासियाँ,मेरा साथ कोई न दे सका, मेरी हसरतें हैं धुआं-धुआं - हसन रिजवी
हमको तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया ,रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया - सैफुद्दीन सैफ
हर शम्आ बुझी रफ्ता रफ्ता ,हर ख्वाब लुटा धीरे - धीरे ,शीशा न सही पत्थर भी न था, दिल टूट गया धीरे - धीरे - कैसर उल जाफरी
ए मौत, उन्हें भुलाए जमाने गुजर गए, आजा कि जहर खाए जमाने गुजर गए - खुमार बाराबंकवी


एक रंगीन झिझक एक सादा पयाम ,कैसे भूलूं किसी का वो पहला सलाम - कैफी आजमी
मैं चाहता भी यही था वो बेवफा निकले ,उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले - वसीम बरेलवी
अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएं ,कैसे तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे - वसीम बरेलवी
शबाब आया किसी बुत पर फिदा होने का वक्त आया ,मेरी दुनिया में बंदे के खुदा होने का वक्त आया - हरीचंद अख्तर


साफ जाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं ,मुंह से कहते हुये ये बात मगर डरते हैं - अख्तर अंसारी


सोचा था कि तुम दूसरों जैसे नहीं होगे ,तुमने भी वही काम मेरी जान किया है - अफजल फिरदौस

एक टूटी हुई जंजीर की फरियाद हैं हम ,और दुनिया ये समझती है कि आजाद हैं हम - मेराज फैजाबादी
देख लो आज हमको जी भर ,के कोई आता नहीं है फिर मर के - मिर्जा शौक


किस-किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया, गैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया - शहरयार
मैनोशी के आदाब से आगाह नहीं है तू, जिस तरह कहे साकी-ए-मैखाना पिए जा - अख्तर शीरानी
मैं नजर से पी रहा हूं, ये समां बदल न जाए ,न झुकाओ तुम निगाहें, कही रात ढल न जाए- अनवर मिर्जापुरी
पहलू से दिल को लेके वो कहते हैं नाज ,से क्या आएं घर में आप ही जब मेहरबां न हों - मौलाना मुहम्मद अली जौहर


तुम्हारी बेखुदी ने लाज रख ली वादाखाने की ,तुम आंखों से पिला देते तो पैमाने कहां जाते - शकील बदायूंनी
कटी रात सारी मेरी मैकदे में,खुदा याद आया सवेरे-सवेरे - सैयद राही
ऐसे भी हैं दुनिया में जिन्हें गम नहीं होता, एक हम हैं हमारा गम कभी कम नहीं होता - रियाज खैराबादी
मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे ,मेरे साकी तू रहे आबाद मैखाना रहे - रियाज खैराबाडी

अर्ज किया है................


पहले तो अपने दिल की रजा जान जाइए ,फिर जो निगाह-ए-यार कहे, मान जाइए- कतील शिफाई
कैसे कह दूं कि मुलाकात नहीं होती है ,रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होती है - शकील बदायूंनी
ये आरजू ही रही कोई आरजू करते ,खुद अपनी आग में जलते जिगर लहू करते - हिमायत अली शायर
हम रातों को उठ-उठ के जिनके लिए रोते ,हैं वो गैर की बाहों में आराम से सोते हैं - हसरत जयपुरी
इस तरह सताया है, परेशान किया है,गोया कि मुहब्बत नहीं एहसान किया है - अफजल फिरदौस
दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं ,बाजार में निकला हूं खरीदार नहीं हूं - अकबर इलाहाबादी
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी ,कुछ मुझे भी खराब होना था - मजाज
अपने ख्वाबों में तुझे जिसने भी देखा होगा ,आंख खुलते ही तुझे ढूंढ़ने निकला होगा - अब्बास दाना

अर्ज किया है................



सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं, कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं - वजीर आगा
उम्र जलवों में बसर हो ये जरूरी तो नहीं, हर शब-ए-गम की सहर हो ये जरूरी तो नहीं - खामोश देहलवी
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझ में, और फिर मानना पड़ता है कि खुदा है मुझ में - कृष्णबिहारी नूर
कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिजरां ,छोड़कर चल बसा वो आज सब हस्ती का सामां छोड़कर - इब्राहीम जौक

Monday, August 10, 2009

जनता बेहाल.सरकार खुशहाल...........

अब उत्तर प्रदेश देश का सबसे खुशहालप्रदेश बनने की राह पे अग्रसर है । जी हाँ , हो सकता है की आप मेरी बात से सहमत न हो लेकिन हमारे उत्तर प्रदेश की योग्य एवं दूरदर्शी मुख्यमंत्री सुश्री मायावती का यही कहना है। दरअसल मै बात कर रहा हूँ अम्बेडकर पार्क और उन तमाम परियोज्नावों की जो प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में है। मायावती जी का कहना है की इससे इतना राजस्व आएगा की प्रदेश एवं जनता का विकास हो पायेगा।यानी ये पर्यटन का केन्द्र बनेगा। जबकि बाकी लोग मायावती जी का विरोध कर रहे है, आप ही बताओं क्या ये ठीक है। और तो नही पता लेकिन जनता के पैसों का इतना दुरूपयोग मैंने नही देखा। शर्म आती है ये देखकर की सार्वजनिक पद पे बैठा एक ब्यक्ति जनता के पैसों से हर जगह अपनी मूर्तियाँ लगवा रहा है। जहाँ सूखा, बेरोजगारी,भुखमरी,गरीबी,अशिक्षा जैसी विकराल समस्याएँ मौजूद हो , वहां पे अपने हितों की इस तरह से पूर्ति न सिर्फ़ निंदनीय है बल्कि एक अपराध है, एक धोखा है इस राज्य की जनता के साथ जिसने लोकतंत्र में विश्वाश किया और इए सरकार को चुना। पता नही वो अमर होना चाहती है या फिर कुछ और , लेकिन शहर को पत्थरों का जंगल तो मायावती जी ने बना ही दिया है। कितने हरे पेड़ काट दिए गए और न जाने अभी कितने और कटेंगे कोई नही जानता। अधिकारीयों की तो लाटरी लग गई है, खूब माल मिल रहा है। उधर मायावती जी के पिता भी आय कर के मामले में परेशान है, अजब हालत है इस देश की भी , कुछ लोगों के पास आय का साधन ही नही है और कुछ लोगों के पास इतना ज्यादा है की टैक्स देना पड़ रहा है।

बात-बात में .........................

कुल मिलाकर संसद का ये सत्र कुछ मायनो में ठीक-ठाक ही रहा। कम से कम मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का विधेयक आ पाया। सरकार बनने के समय जो १०० दिनों का एजेंडा लाया गया था , उ़समे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ही कुछ काम कर पाया जबकि बाकी मंत्रालयों का हाल बुरा ही रहा। सबसे ज्यादा शोर-शराबा देश के महान नेताओं की सुरक्षा के मुद्दे पे रहा। भाई इनकी जान को खतरा भी तो है बेचारे जनता और देश के लिए इतना जोखिम जो उठा रहे है।ये अलग बात है की जनता की सुरक्षा से इनको कोई सरोकार नही है, क्योंकि उनके लिए भगवानतो है ही। इधर महंगाई और सूखे ने लोगों को बेहाल कर रखा है जबकि हमारे माननीय वित्त मंत्री और कृषि मंत्री को इसकी ख़बर ही नही, कह रहे है की ये मौसमी महंगाई है। इस बार उत्तर प्रदेश में फिर ऐतिहासिक घटना घटी, दो महिलाओं में संघर्ष हुआ, एक ने कुछ कहा तो दूसरी तरफ़ से जवाब में उनका घर ही जला दिया गया। ये आज की राजनीति है , अब देखना ये है की इसके आगे क्या होता है। खैर एक बात जो सत्य है की छोटे दलों ने राजनीति को गन्दा ही किया है, सिर्फ़ अपने छोटे स्वार्थों के लिए। अब वक्त आ गया है की सिर्फ़ राष्ट्रीय दल ही सरकार बनाये। माना की राष्ट्रीय दलों का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नही रहा है लेकिन वो फिर भी इन छोटे दलों से बेहतर ही रहेंगे।