Tuesday, March 31, 2009

कितने आजाद है हम


आज देश आजाद है,परन्तु जितनी आजादी हमें मिलनी चाहिए , उतनी नही मिली। पहले हम पराधीन थे , आज स्वाधीन । अर्थात पहले दूसरो की गुलामी करनी पड़ती थी , आज अपने ही देश के पूजीपतियोंऔर सरकारों के अधीन रहना पड़ रहा है। आम आदमी का जीवन-स्तर ऊँचा उठाने की जो कल्पना आजादी के समय की गई थी वह आज तक कल्पना ही रह गई है। आज एक तरफ़ इंडिया है तो दूसरी तरफ़ है भारत। इंडिया चमक रहा है तो भारत अंधेरों में भटक रहा है।

बिस्मिल ने सही कहा है............

तुम्हारी कौमसे वाकिफ हैं सब हिन्दोस्तान वाले

मगर अब कौन आकर कब्र पर आंसू बहाताहै।

खुदा , तूं मौत दे देना , न ऐसी जिंदगी देना ,

वतन वालों की हालत पे कलेजा मुह को आता है।

प्रश्न भाषण का नही है , प्रश्न शासन का भी नही है ,प्रश्न उस ब्यवस्था का है जिसे बैसाखियों के सहारे उठाया जा रहा है

राष्ट्रीयता की बात करने वालों पर सरकार की कृपा की बजाये कोडें पड़ते हो । ऐसे देश में जहाँ शहीदों की माताएं -बेवायें -बहनें भूखी मरती हों , उनके परिवार के लोग सड़कों पे अपना दम तोड़ते हों ,और बेईमान लोग अपना घर भर रहे हों ,जन्म लेने से तो बेहतर है की स्वयं को या तो उन्ही शहीदों की तरह अपने गले में ख़ुद फंदा डालकर समाप्त कर दिया जाए या फिर शस्त्र उठाकर इन सबसे खुला संघर्ष किया जाए।

1 comment:

Adhinath said...

shastra samadhan nahi hai
aisa karen ki wo kahi ke na rah jayen,watan ke gaddaron ko duniya ki najaron me gira do.
aise aapke rashtra hitaisi jajba ko salam...achha hai.