Saturday, November 29, 2008

अब बस करो........................

आतंक का जो नंगा नाच मुंबई में हुआ ,उससे एक बात साफ़ हो गई की हमारे देश में आतंरिक सुरक्षा में बहुत बड़ी कमी है। जिस तरह से ६० घंटे तक आतंकियों ने पूरे मुंबई शहर को बन्दूक की नोक पर रखा उससे उनके नापाक इरादों का पता चलता है । एक बात जो गौर करने लायक है की मनमोहन सिंह सरकार में आतंकी हमले ज्यादा हो रहे है,इस पर विचार करना होगा। मई किसी को दोष नही दे रहा हु लेकिन एक बात तो सच है की हमारे देश में सब ठीक नही चल रहा है। संसद पर हमला हुआ, कई सुरक्षाकर्मी शहीद हुए ,लेकिन दोषियों को आज तक सजा नही हो पाई। देश के कर्णधारो को ये समझना होगा की उनकी आपसी खीचतान से जनता और सैनिकों एवं पुलिस का मनोबल टूटता है। जब भी कोई घटना होती है ,सारे नेता बयानदेने लगते है ,सरकार रहत पैकेज देने लगती है, राजनितिक दल इसे मुद्दा बनने लगते है, कुल मिलकर फिर शुरू होता है गन्दी राजनीती का खेल जो इस देश का और हमारा-आपका दुर्भाग्य बन जाता है। कम से कम राष्ट्र हित के मुद्दों पर राजनीती तो मत करो यार,जब देश हे बर्बाद हो जाएगा तो तुम लोग क्या करोगे, अपनी घटिया राजनीति का खेल किसके साथ खेलोगे ? aबी देश को ऐसे नेतृत्व की जरुरत है जो देश हित को सर्वोपरि रखे, जो देश की जनता के लिए काम करे, जो देश और नागरिको की भलाई के लिए कठोर कदम उठाये, तभी इस देश का कल्याण हो सकता है। अब सिर्फ़ सत्ता की राजनीति करने वालों को समझाना होगा की अपने हितों के चक्कर में वो इस देश और यहाँ की जनता को धोखा दे रहे है । अगर आतंकवाद से लड़ना है तो कठोर कानून बनाने होंगे, न्याय ब्यस्था में सुधार करना होगा,और दोषियों को जल्दी से जल्दी सजा देनी होगी। हो सकता है की इसका विरोध हो लेकिन जनहित के लिए त्याग तो करना ही होगा वरना निर्दोषों की जाने जाती रहेंगी, सड़कें लाल होती रहेंगी। माँओं की कोख सूनी होगी और न जाने कितने सुहाग मिटेंगे....................................................साथियों अब भी देर नही हुई है ,जैसे अंधेरे को मिटाने के लिए एक दिया काफ़ी है उसी तरह एक सार्थक प्रयास से इन दुश्मनों को खत्म किया जा सकता है.....जय हिंद-जय भारत ........अगर कुछ नागवार लगे तो माफ़ी चाहूंगा ..................................

Thursday, November 20, 2008

चुनाव में मुद्दों का अभाव

इस समय देश में छह राज्यों में विधान सभा के चुनाव हो रहे है और सब जगह एक बात सामान्य है की हर जगह आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति चरम पर है। किसी भी राजनितिक दल के पास कोई मुद्दा नही है ,सभी एक- दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हुए है । अभी हाल ही में अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव हुए है और जिस तरह के स्वस्थ माहौल में वहा पर चुनाव हुए है क्या हम उस तरह के माहौल में चुनाव नही कर सकते है । देश में गरीबी, भुखमरी , बेरोजगारी , अशिक्षा जैसे न जाने कितने गंभीर मुद्दे है लेकिन कोई भी दल इनको मुद्दा नहीं बना रहा है, आख़िर क्यों, ये समझ से परे है। आज साठ साल हो गया आजाद हुए लेकिन हम मानसिक रूप से अभी भी आजाद नही हो पाए है । जिस देश में ८० करोड़ से ज्यादा लोग सिर्फ़ २० रुपया प्रतिदिन कमाते हो उस देश की तस्वीर कितनी भयावह होगी ,इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। वाकई इस देश और यहाँ के नागरिको की तारीफ करनी होगी क्योंकि उनकी तरफ़ से आज तक कोई बड़ा आन्दोलन नही हुआ। बच्चो में कुपोषण एक गंभीर समस्या है लेकिन इसके लिए सरकारी प्रयास नाकाफी ही सिद्ध हुए है। इस मामले में हम कुछ अफ्रीकी देशों से भी बदतर स्थिती में है। भारत में जिस तरह से अरबपतियों की संख्या बढ़ी है उसके मुकाबले गरीबों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। समझने वाली बात है की तीन चौथाई संस्सधानो का प्रयोग एक चौथाई लोग कर रहे है और फिर सरकार भी इन्ही के बारे में सोचती है। हाँ तो बात चुनाओं की हो रही थी ,तो मेरा बस इतना कहना है की जनता और ब्यापक हित को चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए और इस घटिया राजनीति का परित्याग जितनी जल्दी हो कर देना चाहिए। क्योंकि अगर देश की जनता ही सुखी नही है तो फिर कैसा लोकतंत्र और कैसी राजनीति । जय हो नेताओं की......जय राम जी की .फिर मिलते है.........................

Friday, November 7, 2008

अमेरिका की जीत.......................

आख़िरकार ओबामा ने अमेरिका में एक नया इतिहास रच ही दिया लेकिन मीडिया ने इसको जिस तरह से पेश किया वह अपने आपमें बहुत दुखद है। यह सही है की अमेरिका के २२५ वर्षो के इतिहास में बराक हुसैन ओबामा पहले अश्वेत ब्यक्ति है जो राष्ट्रपति बने है ,लेकिन वो सिर्फ़ अश्वेत होने की वजह से नही जीते है बल्कि इसलिए जीते है क्योंकि वे एक बेहतर तरीके से लोगो को अपनी बात समझाने में कामयाब रहे। ओबामा ने बदलाव की बात कही जो वहा के लोगो को छू गई। हलाँकि ओबामा को आतंकवादी तक कहा गया लेकिन obama ne इसकी परवाह न करते हुए अपना काम किया और अंततः जीत हासिल की। मुझे याद है की अपनी हार स्वीकार करते समय मैक्कैन ने कहा की भले ही मै हार गया हूँ लेकिन ओबामा अब हम लोगों के राष्ट्रपति है । जाहिर है की सिर्फ़ अश्वेत लोगों के वोट से वो नही जीते बल्कि श्वेत लोगों ने भी वोट किया है। उनकी सभाओं में भीड़ और लोगों को रोते हुए देखना एक आश्चर्य से कम न था। आखिरकार साठ के दशक में अमेरिका के गाँधी मार्टिन luthar किंग जूनियर का सपना पूरा हो ही गया। क्या भारत में हम इस तरह की राजनीति और राजनेताओं की कल्पना भी कर सकते है। मुझे तो असंभव लगता है लेकिन अगर आपको उम्मीद नज़र आती है तो मै भी आपके साथ हो लेता हूँ...................